ऐसा बड़े महात्मा एवं बड़े पुण्य भागी लोगो
का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति रोज श्री गोस्वामी तुलसीदास रचित रामायण के अयोध्या
कांड के दिए गए दोहा एवं चोपाई का अच्छे मन से पाठ करता है तो उस मनुष्य के घर में
कभी भी गरीबी एवं दरिद्रिता निवास नहीं करती। ऐसा कहते हैं कि ये तो सत्य है कि कभी
भी गरीबी एवं दरिद्रिता निवास नहीं करती परन्तु घर में सम्पनता कितनी आएगी इसका कोई
मूल्याङ्कन नहीं है।
मै सभी पाठक गण प्रतिदिन नीचे दिए गए दोहे
और चोपाई का पाठ करे और अपने गृहस्थ जीवन को सफल बनाये।
प्रार्थना
नीलाम्बुजश्यामलकोमलांग सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥
अर्थ:-नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्री सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में (क्रमशः) अमोघ बाण और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्री रामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥
दोहा :
श्री गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
अर्थ:-श्री गुरुजी के चरण कमलों की रज से
अपने मन रूपी दर्पण को साफ करके मैं श्री रघुनाथजी के उस निर्मल यश का वर्णन करता
हूँ, जो चारों फलों को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) देने वाला है।
चौपाई :
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥
भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी॥1
अर्थ:-जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर
आए, तब से (अयोध्या में) नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं।
चौदहों लोक रूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी मेघ सुख रूपी जल बरसा रहे हैं॥
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥
मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती॥2
अर्थ:-ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्ति रूपी
सुहावनी नदियाँ उमड़-उमड़कर अयोध्या रूपी समुद्र में आ मिलीं। नगर के स्त्री-पुरुष
अच्छी जाति के मणियों के समूह हैं, जो सब प्रकार से पवित्र, अमूल्य और सुंदर हैं॥
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥3
अर्थ:-नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता।
ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्माजी की कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर निवासी श्री
रामचन्द्रजी के मुखचन्द्र को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥
मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली॥
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ॥4
अर्थ:-सब माताएँ और सखी-सहेलियाँ अपनी मनोरथ रूपी बेल को फली हुई देखकर आनंदित हैं। श्री रामचन्द्रजी के रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख-सुनकर राजा दशरथजी बहुत ही आनंदित होते हैं॥
आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाये।
जय श्री राम जी
Jay shree ram
ReplyDeleteJay shree ram
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